Yudhdh Kyun Hote Hain Poem by Pushpa P.

Yudhdh Kyun Hote Hain

Rating: 5.0

भरा आकाश और नभ मंडल बारूद और धुयें की बौछार है

सिसक रही मानवता ये कैसा नरसंहार है
जहां थी तारों की लड़ियां वहां बमों की भरमार है

काँप रहा नभमंडल सारा ये कैसा अत्याचार है
खोज ली बेटी ने जीवन बचाने की औषधि
पर क्यों पिता का युद्ध व्यापार है

बेबस बच्चे भूखे प्यासे मां बाप भी लाचार हैं

क्यों कर चली गई इंसानियत क्यों हैवानियत का ही राज है

बातों से कर सकते थे सुलह जहां, बेकार ही किया संहार है

नर कंकालों से भर गई धरती पर फिर भी ना बदला उनका व्यवहार है

COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 20 May 2022

This is really a very poignant commentary on the sad state of affairs at regional and global level. Can't we live without conflict, violence and war? Can't we do anything to improve the lot of impoverished children people in general?

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