You & Me Poem by Ashish Singh

You & Me

तुम बिन मैं अधुरा ऐसे रात जैसे बिन चंद्रमा
क्या अस्तित्व है परवाने का जो ना रौशन हो शमा

अधुरी है हर प्रेम कहानी जिस्मे बिछड़न ना आए
कहते है ये आग बिरह की प्रेम को और बढा जाए

आस ना हो जो मिलन की तो इंतजार अधुरा है
जहा बसेरा हो भरोसे का वही होता प्यार पुरा है

मैं बांसुरी हू तेरा तु है मेरे लबों की धुन
मैं संगीत हू तेरे मन का तू बस मेरी सांसो को सुन

नही रहना मुझे ऐसे जैसे संग हो दो किनारे
समंदर होना है मुझे जहा गिरती है नदी की धारे

मैं बन जाऊ पानी तू चाहे जो मन बन जाना
ना हो फिर जुदा कुछ यु आकर मुझसे मिल जाना

कर शामिल मुझको खुद मे या मुझमे शामिल हो जाना
बना कर खुशबू मुझको अपने संग ले उड़ जाना

समा जा मुझमे ज्यो सिप मे मोती समाती है
चाहे कर लो जितने भी टुकड़े चन्दन से खुशबू कहां जाती है

मैं ढूंढ रहा हू जिसे बन कर दिवाना सारे जहाँ मे
वो तो छाई है बन कर धूप मेरे मन के आसमान मे

मैं पतंग सा लहराऊ तू वो डोर है जो मुझे ताने है
तेरे बिन बता जरा क्या मेरे होने के मायने है

इश्क मे जुदाई का मौसम आना लाजमी है इससे इंकार नही
आ तुम ओर मैं, हम हो जाए , ना कहना फिर की प्यार नही

©आशीष सिंह

COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success