Udveg उद्वेग Poem by Alok Agarwal

Udveg उद्वेग

क्या बारिश वहाँ भी हुई होगी
जहाँ भीगे हैं हम,
वहाँ क्या आप भी भीगे होंगे

क्या तूफ़ान वहाँ भी आया होगा
जहाँ उजड़े हैं हम
वहाँ क्या आप भी उजड़े होंगे

क्या आग वहाँ भी लगी होगी
जहाँ जले हैं हम
वहाँ क्या आप भी जले होंगे

जिंदा तो हैं मगर ज़िन्दगी के लिए
कफ़न तो वर्ना कबका सजाकर रखा है

उम्मीदों से दामन तो कब का छूट गया था
कागजों के मकान तो कब के ढह गए थे
मरहम तो हमारे पास मौजूद न थे
पर इस कश-म-कश में
चारासाज़ को भी हमारी लाज न आई
किसी और से अब क्या कहना

मौत तो एक दिन गुज़र भी जायेगी
पर इस राहे-गुज़र से तेरी याद क्यूँ नहीं जाती

मौका-ए-वारदात पे तो तुम भी मौजूद थे
फिर ये आलम-ए-सर्फोर्शी रवाँ क्यूँ नही होती

कब तक गंगा में पाप धोने जायेंगे ‘आलोक'
मैली जो वो हो चुकी तुम्हारे पाप धोते-धोते

READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success