तुम सदा खुश रहो.. Tum Poem by hasmukh mehta amthalal

तुम सदा खुश रहो.. Tum

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तुम सदा खुश रहो
शुक्रवार, ३ जनवरी २०२०


तुम सदा खुश रहो
अपनी बात कहते रहो
में चुपचाप सुनता रहु
और अपनी सुनाता राहु। तुम सदा खुश रहो

ज़माना बदल गया है
पर तुमको नहीं बदलपाया है
अपने कदमपर चलते रहना
सब की बातें सुनते रहना। तुम सदा खुश रहो

दीवानापन है दोस्ती का
कहे हुए लम्हों का
बस अपनी बातपर कायम रहो
मन ही मन गुनगुनाते रहो। तुम सदा खुश रहो

तुम्हारा ये लड़कपन
बस लगता है अपनापन
तुम तो हो ही लाजवाब
देती रहती हो सबके जवाब। तुम सदा खुश रहो

मन को सदा मक्कम रखना
बीती बातों पर कायम रहना
अपना अगम अपना ही तो है
अपनी खुशियां अपनी ही तो है।तुम सदा खुश रहो

हसमुख मेहता

तुम सदा खुश रहो.. Tum
Thursday, January 2, 2020
Topic(s) of this poem: poem
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