सच (Truth) Poem by Sukhbir Singh Alagh

सच (Truth)

सच को मिटाने वाले
खुद मिट गए जहान से

ये सच नहीं मिट पायेगा
सुन लो जुबान से

तुम लाख कोशिशे कर लो
फिर भी हार जाओगे.

फिर भी सच को तुम
मिटा नहीं पाओगे

Thursday, December 29, 2016
Topic(s) of this poem: truth
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