आईने का सच Poem by The Yash Pathak

आईने का सच

कितनी कोशिश की के चेहरा ना उदास आए मुझे,
फिर भी आईना हमेशा बेनक़ाब आए मुझे।

लोग कहते हैं यहाँ हर दर्द का होता इलाज,
पर दुआ के बाद भी क्यों बेहिसाब आए मुझे।

तेरे जाने की सज़ा रोज़ मिली है दिल को,
जैसे हर साँस में तेरी ही ख़राब आए मुझे।

रात ढलते ही वो आवाज़ें बहुत तंग करें,
ख़्वाब टूटा तो नया ज़ख़्म ख़िताब आए मुझे।

अब तो हँसते भी डर लगता है 'यश', रो न पड़ूँ,
ज़िंदगी तेरे बहानों से अज़ाब आए मुझे।

By - The Yash Pathak

आईने का सच
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success