अकल दाढ़ Poem by Sreekala Sivasankaran

अकल दाढ़

अक़ल दाढ़
सभी दिशाओं में बढ़ रहा है
यह क्या करेगा?
मुझे नहीं पता
मुझे नहीं पता
यही मैं जानती हूँ

यह कहाँ-कहाँ बढ़ सकता है?
यह आपके गालों तक बढ़ सकता है
यही वह जगह है जहाँ यह दर्द करता है
यही वह जगह है जहाँ यह सूज जाता है

मैं सूजन महसूस कर सकती हूँ
मैं दर्द महसूस कर सकती हूँ
यही मेरे पास है
बस यही मेरे पास है


श्रीकला शिवशंकरन

This is a translation of the poem Wisdom Tooth by Sreekala Sivasankaran
Wednesday, June 12, 2024
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