Speed Limit Poem by Alok Agarwal

Speed Limit

बात उस ज़माने कि है
जब हम तुर्रम खान हुआ करते थे
गाड़ी सौ पे चलाया करते थे
ट्रैफिक वाले को हमारी गति न-गवार गुजरी
गाड़ी रोकी
मुझको पकड़ा, डराया, धमकाया और चिल्लाया
वजन से जानदार दीखते हो,
फिर नियम का पालन क्यों नहीं करते हो
बन गए हम पगला, सोचा काम करेगा अगला
बिल्ली जैसी आँखें बनायीं
मासूमियत कि झलक दिखाई, काबिलियत इतराई
और पुछा, "कहाँ लिखा है"
वो ठहरा हमसे ज्यादा होशियार
होगे तुम इंजिनियर हम तो हैं 10वीं पास
तुम्हारे जैसों के लिए ही बोर्ड बनवाया है
उस पर गति सीमा 50 चिपकाया है
500 रुपये का जुर्माना बकाया है

500 का फटका, मेरे लिए है झटका
हो गए हम सजग
अब नहीं करेंगे ऐसी भूल
बात ये हमने औरों को भी बतलाई
ताकि वो न बरतें कोई ढिलाई
सुनाई औरों ने भी अपनी दास्ताँ-ए-आप-बीती
बोले हमने तो 500 का मामला 300 में सेट कराया था
तुमने क्यूँ 500 फुनक्वाया था
हम तो हैं इस खेल में नए
नयी तरकीब सीखकर गए
अगले माह हुई फिर से वही गलती
इस बार गाडी थी 70 पार, पैसे मांगे उसने हज़ार
हमने अपनाई वही तरकीब
बिल्ली जैसी आँखें दिखाई
डिस्काउंट कि ख्वाइश जताई
हो गया इस बार वो सेट
फिर झल्लाया, तिलमिलाया और गुर्राया
बोला, "हमको क्या सब्जी-तरकारी वाला समझ रक्खा है, या तो पैसे दो या अन्दर हो"
करोड़-पति के कार्यक्रम कि याद आई
50-50 के दो आप्शन होने के बाद भी लाइफलाइन कि याद आई
दिया इस बार हमने हज़ार
और इस तरह हमने कि नौका पार

अब न करूँगा ऐसे गलती
ज़िन्दगी नहीं है सस्ती
अब गाडी चलाता हूँ 100 पार
जब 70 पर भी मरना है, तो किस बात का डरना है
जेब में है 500 कि पत्ती
ऐसे ही भ्रष्टाचार करेगा तरक्की

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