रंभा, अंबा, भगिनी, आत्मजा, सब ही में तो मुझको पाते हो!
सभी रूपों में, तुम समर्पित, क्यों मुझको ही उलझाते हो!
क्या दे सकते मुझको तुम, अखियाँ तक तो तुम चुराते हो ।
मेंरे आंचल -आंगन की खुशियाँ, सौदा तक कर, गिनवाते हो!
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