भारत की नारी Poem by Saroj Gautam

भारत की नारी

प्राचीन भारत में भी था स्थान,
आज भी अधिकार, कहां उत्थान?
यह है अत्याचार, क्यों?
यह एक विडंबना, पर क्यों?

शिक्षा, आजीविका में विजय मिलती,
घर के अधिकारों, कहां है गिनती,
यह है एक दुर्भाग्य, क्यों?
यह है एक कटुता, पर क्यों!

राजनीति और सेवा मे आकर भी,
उतना उसे समाज में सम्मान नहीं,
यह है दुख, क्यों?
यह है कड़वाहट, पर क्यों?

पदक जीत कर गौरवान्वित करती,
पुरुष खिलाड़ियों सी प्रशंसा नहीं,
यह है एक त्रासदी, क्यों?
यह है एक अपमान, पर क्यों?

कला और साहित्य मे होकर भी,
पुरुष कलाकारों सी ख्याति नहीं,
यह है एक अपूर्णता, क्यों?
यह है एक कमी, पर क्यों?

माँ है, बच्चों को पालती जहां,
घर के कामों में सहयोग कहां,
यह है एक अन्याय, क्यों?
यह है एक अपमान, पर क्यों?

पत्नी है, पति का देती है साथ,
घरेलू हिंसा का पाए प्रसाद,
यह है एक दर्द, क्यों?
यह है एक त्रासदी, पर क्यों?

करें माता-पिता की सेवा, सम्मान,
परंतु हक मिलते कहां समान?
यह है एक बेईमानी, क्यों?
यह है एक धोखा, पर क्यों?

उठो, नारी करते आह्वान!
अधिकारों को लड़ो, पाया ज्ञान,
अपनी आवाज़ इतना बुलंद करो,
अपना मान, सम्मन प्राप्त करो!


'सरोज'

भारत की नारी
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success