' ओस ' Poem by Saroj Gautam

' ओस '

चुपचाप बूँद बूँद उतर रही है,
धरती की गोदी में सिमट सहम कर!
माँ की उँगली थामे,
रुपहले सपने सी!
पत्तों पत्तों पर रपट अटक कर।

मैदानों में ओस गीत गुनगुनाती है,
घास घास की नोंक-नोंक पर रच बस जाती है!
प्रिय मिलन को हो आतुर,
ज्यों श्रृंगार करती कोई नवेली!
ज्यों नीरव प्रेम की पहली पहली पहेली!

पर्वतों पर पलकें ओस झकपकाती है,
शीतल स्पर्श सी गिर गिर जाती है l
बर्फ़ की बर्फी, हवा सी हल्की, हर बूँद एक स्मृति!
हौले से लौटी हो घर आँगन,
ज्यों बचपन की कोई कोमल छुअन।

मरुस्थल उसे जी भर भर पुकारे है,
आँखों में उसकी प्यास के कुएं गहरे है।
नमी ठहरी रूठी सखी, लौटती भी नहीं।
ओस कविता का बस आधा अधूरा अंतरा है,
भाव कहीं नहीं, अभिव्यक्ति भी नहीं।

तटों पर बनती ओस लहरों की सहेली।
नारियल के पत्तों पर जाए झूम झूम,
बिखर बिखर जाए मदमस्त अलबेली!
जलतरंगों की कहे अनकही कई कहानी,
लाई है चतुर चुराकर चंदा से चांदनी!

शहर तो भागती भीड़ की बस सांसें भरे है,
कंक्रीट के दिल, उसके गीतों को बहरे हैं!
और किसी किसी छत पर तो,
रोज रोज बस इंतज़ार करती आंखें मूंद!
सीमेंट की नगरी सगरी, नसीब कैसे हो,
बताओ भला, उसे ओस की एक भी बूंद?

नसीब कैसे हो भला, कोई एक भी बूंद?

' सरोज '

' ओस '
Thursday, May 22, 2025
Topic(s) of this poem: imagination,water,journey
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
यह कविता ओस को विभिन्न प्राकृतिक और मानवीय संदर्भों में प्रस्तुत करते हुए उसकी कोमलता, सुंदरता, क्षणभंगुरता और आधुनिक जीवन में उसकी अनुपस्थिति का चित्रण है।THIS IS ALL ABOUT DEW DROP. ITS FORMATION IN DIFFERENT LANDSCAPE. ITS DELICACY AND BEAUTY.
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