Sapne Dekhte Hain To Dar Jaate Hain Poem by Alok Agarwal

Sapne Dekhte Hain To Dar Jaate Hain

सपने देखते हैं तो डर जाते हैं
खुशियाँ इतनी पाकर मर जाते हैं

कश्ती में हो जाते हैं सवार
मौजो के सहारे पार जाते हैं

सुबह करते हैं शाम का इंतज़ार
साये के जाने से घबर जाते हैं

मैखाने के आगे खड़े रहते हैं
अन्दर जाने पर गिर जाते हैं

जख्म खाएं हैं इस कदर
उनके भरने से सिहर जाते हैं

पंछी बन कर उड़ते रहे
अरमानों के घरोंदे जर जाते हैं

शमा टिम-टिमाती रही रात भर
राज़दार धोका देकर जाते हैं

मुलजिम से मुजरिम हो गए
हथकड़ियों में बंधकर जाते हैं

‘आलोक' हैं आदत-ए-मजबूर
तूफानों से लड़कर जाते हैं

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