सपने देखते हैं तो डर जाते हैं
खुशियाँ इतनी पाकर मर जाते हैं
कश्ती में हो जाते हैं सवार
मौजो के सहारे पार जाते हैं
सुबह करते हैं शाम का इंतज़ार
साये के जाने से घबर जाते हैं
मैखाने के आगे खड़े रहते हैं
अन्दर जाने पर गिर जाते हैं
जख्म खाएं हैं इस कदर
उनके भरने से सिहर जाते हैं
पंछी बन कर उड़ते रहे
अरमानों के घरोंदे जर जाते हैं
शमा टिम-टिमाती रही रात भर
राज़दार धोका देकर जाते हैं
मुलजिम से मुजरिम हो गए
हथकड़ियों में बंधकर जाते हैं
‘आलोक' हैं आदत-ए-मजबूर
तूफानों से लड़कर जाते हैं
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