कविता Poem by Sameer Khasnis

कविता

पद्य रुतले खोल मनात

ओळ रुसली नितळ ओठात

न शब्द सुचले, न उमटेल कागदावरी

भुरभुरावे जैसे फुलपाखरू पठारावरी

उपेक्षित मी, प्रिये शब्दाविना

कागद कोरा, उतरले प्रक्त नाव

नाव तुझे, प्रेम ज्यांचा अंतर्भाव

नाव तुझं हिचं कविता, अवर्णनीय तुझा प्रभाव!

नज़्म

नज़्म उलझी हुई है सीने में

मिसरे अटके हुए हैं होंटों पर

लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं

उड़ते फिरते हैं तितलियों की तरह

कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम

सादा काग़ज़ पे लिख के नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है

इस से बेहतर भी नज़्म क्या होगी!

कविता
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
The Poem is from the legendary poet of India Gulzaar Saab. I am no body who can write something or rather anything about the work of Gulzaar Saab. This is my feelings of respect and admiration for Gulzaar Saab
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