रोशनी Poem by Samar Sudha

रोशनी

दीए तल्ले अंधेरा, किताबों में पड़ा था मैंने
सोचा ना था, सोच के क्या हैं कहने

रोशनी खुद, खुदको रोशन करेगी
चाल सरणट्ठे की भी आहट भरेगी

पुराने शब्दों ने कुछ राह दिखाई है
लिखने की लॉट मन में जगाई है

लम्बी नहीं, छोटी सी सांस लूंगा
बड़ा नही, पर बेहतर लिखूंगा

सफर आसान नहीं, अभी भारी है
ज़िंदगी का संघर्ष, अभी जारी है

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