दुविधा Poem by Samar Sudha

दुविधा

गुस्ताखी हमने की नही
ख़ता शायद हो गई

रात को हम जगह रहे,
सुबह शायद सो गई

सपनो में हम उलझे रहे
शख्सियत सवालों में खो गई

होश आया तो मझधार में पाया
अब तो काफ़ी देर हो गई

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