अनिंद्रा Poem by Samar Sudha

अनिंद्रा

बिस्तर मेरी बेचैनी का गवाह बना,
के सारी रात जगह हूं मैं

किफायती था जिंदगी का खर्च,
फिर भी गया ठगा हूं मैं

मासूम नही बहुत चालाक है यह जिंदगी,
अब पहचानने लगा हूं मैं

रफ्तार की समझ देरी से मिली
चलते चलते भगा हूं मैं

क्यों नही किया खयाल मेरा?
बेगाना नही सगा हूं मैं

किस बात का रोस या कैसी शिकायत,
क्या ईमानदार नही, दगा हूं मैं?

इसी कशमकश में बिस्तर मेरी बेचैनी का गवाह बना,
के सारी रात जगह हूं मैं

COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success