निःशब्द Poem by Pushpa P.

निःशब्द

शब्द हुए हैं खामोश,
इस मंज़र को देखकर
कल्पान्त कर रही आत्मा
इस करुण बेबस अनजान पर

खून खौलता है हर हिंदुस्तानी का
मन करता है की रौंद डाले इन वहशियों को
पलभर में दिया है आग़ाज़ युद्ध का इन नापाक इंसानों ने

क्यों पत्थर से भी कड़े लोहे के दिल
बना दिए दुनिया में तुमने ईश्वर
क्यूँ एक बूँद ना भर दी उनके दिलों में
प्यार और कोमलता की

आसमा रो पड़े इसे देखकर
फिर क्यों तेरे सिर्फ अलग नाम के लिए,
ले ली जान एक मासूम की

ये कैसी विभत्स भक्ति उनकी की ,
कई घर बर्बाद हुए कई बेचारे अपंग हुए
बिखर गई ज़िंदगी और मिले
आँसू जीवन भर के लिए
और कई मांगे सुनी हुई तो कई अनाथ हुए

लेकिन आख़िर क्यों? ? क्यों? ?
वहसीयत ही हमेशा जीत जाती है
क्यों बेमूरव्वती ही नापाकी का जश्न मनाती है
तेरे घर में इतनी देर क्यों हो जाती है
हे ईश्वर की इंसा के विश्वास की
तुझ पर रहने वाली लड़ी हरदम टूट सी जाती है

नर संहार करने वाले उन दरिंदों को
सज़ा देकर अपने भक्तों की आस्था तुम बनाये रखना
जो ज़िंदगियाँ इस वक्त रो रही है ख़ून के आँसू,
उन्हें दुख सहने की तुम शक्ति देना

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