धोखा Poem by Pushpa P.

धोखा

धोखा कहूँ किस्मत का या कहूँ नसीबों की बातें

इसे दिल चीर कर रख दिया तकदीर के धोखे ने

अफसाने वजूद हुआ करते थे उसके आने से

जुगनुओ सी चमक थी जिसकी आँखों में

समय की धारा बहे जाती थी उसकी,

मुस्कुराहटों को देख कर न ऐसी खबर थी

न एइसा ऐतबार था की कभी, ,

जीवन में कभी एइसा दर्द भी मिल सकता है,

तकदीर से धोखा खाने पर दर्द के रंग बदलते देखे हमने

बहुत इस ज़माने में, पर अब दर्द ही सहारा है

तकदीर से धोखा खाने पर, फिर भी

यादों में बसी है वो मेरी नन्ही सी कलि

अपनी मुस्कान लिए बाहें पसारे मानो

साथ ही है वो मेरे दिल में आज भी न

माने क्या करू न समझे है . कितना भी समझाने से
,
एइसे बड़े धोखे तकदीर के खाने से ..

Tuesday, September 12, 2017
Topic(s) of this poem: abc
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