Friday, April 15, 2016

कुछ सपने सजा लें‏ Comments

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चलो न मितरा कुछ सपने सजा लें,
हम तुम एक नया जहां बना लें।
आ जाओ न मितवा कभी डगर हमारी,
तुमसे बतियाकर अपना मन बहला लें।
...
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Pushpa P.
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Rajnish Manga 15 April 2016

प्रकटतः नववर्ष की पृष्ठभूमि में लिखी गयी इस कविता में दुःख दर्द से मुक्त एक सुंदर संसार का निर्माण करने का आग्रह दिखाई देता है. कविता की अंतिम पंक्तियाँ जैसे इसी आशय को रेखांकित कर रही है: खुशियों के बीज बोकर इस, नए वर्ष को और नया बना दें ।

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Pushpa P Parjiea 10 June 2016

BAHUT BAHUT DHANYWAD APKO IS KAVITA KO PASAND KARNE KE LIYE OR APNE ANMOL VICHAAR PRKAT KARNE KE LIYE..

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