निशब्द, निशांत, नीरव, अंधकार की निशा में
कुछ शब्द बनकर मन में आ जाए,
जब हृदय की इस सृष्टि पर
एक विहंगम दृष्टि कर जा
...
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शब्दों का ऐसा संगीत इस कविता में झंकृत हो रहा है जो मन को मुग्ध कर लेता है. बचपन के भोलेपन का भी बड़ा प्यारा चित्र खींचा गया है. अंततः एक ऐसे संसार के सृजन की कामना है जो निर्मल, पावन, क्लेश मुक्त है. निशब्द, निशांत, नीरव, अंधकार की निशा में कुछ शब्द बनकर मन में आ जाए, थे निर्मल, निर्लिप्त द्वंदों से, छल का नामो निशां न था
so sweet , ... kavita me sangeet ko dekhna yane kavita ki unchaiyon ko pahchanna jise aapne pahchana hai bhai hardik abhar sah dhanywad..
मेरा सुझाव है कि जहाँ 'No Image Found' उसे डिलीट कर देना चाहिये और यदि कविता के साथ चित्र देना चाहते हैं तो Manage Poem में जा कर 'एडिट' के ज़रिये ऐसा करें. Thanks.