आँख खुली तो देखा मुझसा कोई लेटा था वहां
रो रहे थे चेहरे कई जाने पहचाने से
देख उन्हें दुखी हुआ एक पल को मैं
आगे बड़ा चुप कराने जब मैं तो
पता चला बहुत दूर निकल आयाहूँ मैं.
सालों से जी रहा था बेपरवाह सी ज़िन्दगी,
गुजर गया जब, तब दिलों को एहसास हुआ.
ग़मगीन हुए चार कंधे मुझे लिए जा रहे थे तो
मेरे बिना कैसे काटेंगे ज़िन्दगी सोचे जा रहे थे वो
पर अब क्या, ये तो अपने ही जनाजे पर चला आया हूँ मैं.
अपना -पराया, तेरा-मेरा खोना-पाना, हार-जीत
सब बेकार झमेला था
सब साथ थे, फिर भी में अकेला था
हर एहसास से परे निकल आया हूँ मैं.
उस जहाँ से इस जहाँ में निकल आया हूँ मैं
फ़िक्र नही अब यहाँ सुबह शाम की मुझको
उस मतलब की दुनिया से दूर निकल आया हूँ मै
रिश्तों के सैलाब में मोम सा पिघल
अपना ही अंत करीब ले आया हूँ
पर अब क्या, ये तो अपने ही जनाजे पर चला आया हूँ मैं.
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I would like to translate this poem
well written....but can i suggest u to translate so that the world can have a glimpses of ur bright talent...