My Death Bed Poem by Poonam Mehta

My Death Bed

आँख खुली तो देखा मुझसा कोई लेटा था वहां
रो रहे थे चेहरे कई जाने पहचाने से
देख उन्हें दुखी हुआ एक पल को मैं
आगे बड़ा चुप कराने जब मैं तो
पता चला बहुत दूर निकल आयाहूँ मैं.

सालों से जी रहा था बेपरवाह सी ज़िन्दगी,
गुजर गया जब, तब दिलों को एहसास हुआ.
ग़मगीन हुए चार कंधे मुझे लिए जा रहे थे तो
मेरे बिना कैसे काटेंगे ज़िन्दगी सोचे जा रहे थे वो
पर अब क्या, ये तो अपने ही जनाजे पर चला आया हूँ मैं.

अपना -पराया, तेरा-मेरा खोना-पाना, हार-जीत
सब बेकार झमेला था
सब साथ थे, फिर भी में अकेला था
हर एहसास से परे निकल आया हूँ मैं.
उस जहाँ से इस जहाँ में निकल आया हूँ मैं

फ़िक्र नही अब यहाँ सुबह शाम की मुझको

उस मतलब की दुनिया से दूर निकल आया हूँ मै
रिश्तों के सैलाब में मोम सा पिघल
अपना ही अंत करीब ले आया हूँ
पर अब क्या, ये तो अपने ही जनाजे पर चला आया हूँ मैं.

COMMENTS OF THE POEM
Dr Library @ Debadarshi 20 September 2012

well written....but can i suggest u to translate so that the world can have a glimpses of ur bright talent...

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