मेरे इश्क़ को इश्क़ ही रहने दो
फकत इबादत का नाम रहने दो
तोड़ के ला सकते हैं चाँद सितारे
कोई तरकीब तो ऐसी ईजाद होने दो
मरने से यूँ तो घबराते नही हैं
मगर इक रात घर तो अपने सोने दो
न हिज्र की है तमन्ना न विसाल की
मेरे बाग़ मे एक गुलाब तो खिलने दो
दिल-जिगर मे सुर्ख खून तो बहुत है
निशान इसके पैराहन मे जमने तो दो
शबनम भी जिसे देखकर होती है फना
ऐसी कातिल निगाह इधर भी पड़ने दो
लोग कहते हैं जान से जाओगे
पहले मेरी जान को इधर आने तो दो
लिखने को तो लिख सकते हैं इबारत
तनिक कलम मे स्याही तो भरने दो
कहने को तो बहुत कुछ है ‘आलोक'
कुछ बन्दिशें जुबान पर भी रहने दो
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