Mere Ishq Ko Ishq Rehne Do मेरे इश्क़ को इश्क़ ही रहने दो Poem by Alok Agarwal

Mere Ishq Ko Ishq Rehne Do मेरे इश्क़ को इश्क़ ही रहने दो

मेरे इश्क़ को इश्क़ ही रहने दो
फकत इबादत का नाम रहने दो

तोड़ के ला सकते हैं चाँद सितारे
कोई तरकीब तो ऐसी ईजाद होने दो

मरने से यूँ तो घबराते नही हैं
मगर इक रात घर तो अपने सोने दो

न हिज्र की है तमन्ना न विसाल की
मेरे बाग़ मे एक गुलाब तो खिलने दो

दिल-जिगर मे सुर्ख खून तो बहुत है
निशान इसके पैराहन मे जमने तो दो

शबनम भी जिसे देखकर होती है फना
ऐसी कातिल निगाह इधर भी पड़ने दो

लोग कहते हैं जान से जाओगे
पहले मेरी जान को इधर आने तो दो

लिखने को तो लिख सकते हैं इबारत
तनिक कलम मे स्याही तो भरने दो

कहने को तो बहुत कुछ है ‘आलोक'
कुछ बन्दिशें जुबान पर भी रहने दो

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