Mere Gunahon Ke Raazdaar Nahin Rahe Poem by Alok Agarwal

Mere Gunahon Ke Raazdaar Nahin Rahe

मेरे गुनाहों के राजदार नही रहे
वो हंसी के अफ़साने नहीं रहे

गलती ढूँढ़ते रहे रात-दिन
न मिलने पर उदास नहीं रहे

दोस्तों ने दुश्मनी का पाठ पढ़ा दिया
जो किताबों के पन्ने में नही रहे

शहर में ख़ामोशी छायी रही
शोर मचाने वाले नही रहे

हुक्म-मरान चाल-ए-बिसात सोचते हैं
गम करने वाले नही रहे

नज़रें मिलाने कि हिम्मत तो रही
ज़मीं पे पाँव नही रहे

अश्क लहू बन कर बहते हैं
रंजिश वाले सागार नही रहे

ओहदे कि नुमाइशें होती रही
इतरा के चलने वाले नही रहे

दिन-ओ-माह-ओ-साल बदलते रहे
खंजर भोपने वाले नही रहे

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