मेरे तीखे दाँत, एक टुकड़ा काटते हैं Poem by M. Asim Nehal

मेरे तीखे दाँत, एक टुकड़ा काटते हैं

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कांपती हुई जीभ पर पैदा हुए हर झूठ के साथ,
मेरे तीखे दाँत, एक टुकड़ा काटते हैं,
क्या ये शब्दों के अयोग्य का दर्द है?
मन और बुद्धि ने एक लड़ाई लड़ी,
लेकिन मेरा भरोसा टूट गया,
मैं ढूँढ़ता हूँ खुद को ईमानदारी के आईने में,
और चाहता हूँ कि मेरी जीभ कोमल और बुद्धिमान हो,
वैसे ही जैसे भोर की चमक में सद्गुण अवगुण पर भारी,
मै इसे ईमानदारी के आलिंगन में नृत्य करते देखना चाहता हूँ

This is a translation of the poem Teeth Biting Tongue by M. Asim Nehal
Saturday, October 12, 2024
Topic(s) of this poem: journey
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