कभी इतनी निपुण और साहसी थीं ये स्याही से सनी उंगलियाँ,
अब शांत पड़ी हैं, उनकी कहानियाँ अनकही हैं,
कलम, जो कभी इतनी जीवंत और बुद्धिमता से भरी थीं,
अब चुप हैं, उनकी स्याही सूख गई है।
उनके विचार पतझड़ के पत्तों कि तरह उड़ गए हैं,
उनके शब्द सर्दियों कि बर्फीली पहाड़ियों कि तरह थे,
जो अब पिघल गए हैं, केवल एक निशान छोड़ गए।
उनके दिमाग, एक भूलभुलैया कि तरह, कितने जटिल थे,
अब निष्क्रिय पड़े हैं और कुछ मोड़ने के लिए नहीं।
और उनकी कल्पनाएँ, जो कभी इतनी उज्ज्वल थीं,
अब फीकी पड़ गई हैं, एक लुप्त होती रोशनी की तरह।
उनके सपने, एक दूर कि याद कि तरह,
एक क्षणभंगुर हवा कि तरह कुछ धीमे चलने लगे,
उनके दिल, एक रेगिस्तान कि तरह, सूखे और शांत,
अब काव्यात्मक इच्छा के साथ नहीं धड़कते।
उनकी आत्माएँ, एक बंद खिड़की कि तरह, बंद पहेली,
अब कोई नया विचार इसे खोल नहीं सकता
खामोश है लेकिन कई राज़ दफन है इनमे,
आज अपनी सियाही के माध्यम से सुगंध बिखेर रही है ।
और उनके काव्यात्मक सपने लाखों का मन रोशन कर रहे हैं।
Absolutely beautiful, so well penned in Hindi language. Classic, dear Asim ji. Top Stars & to my favourite