Kya Na Kiya Poem by Alok Agarwal

Kya Na Kiya

क्या न किया

मंदिर बना लिया
बूत बिठा लिया
पांवडा बिछा लिया
फूल चढ़ा लिया
तिलक लगा लिया
दीपक जला लिया
घंटी बजा लिया
गर्दन झुका लिया
पर दुआ कबूल तो नहीं

मिटटी खोद दिया
बीज बो दिया
खाद मिला दिया
पानी डाल दिया
गुड़ाई कर दिया
हल जोत दिया
अंकुर निकला
पेड़ बड़ा हुआ
पर फल लगे तो नहीं

पैसे दे आई
किताब मोल लाइ
कवर संग लाइ
पन्ने खोल लाइ
मोरपंख दबा लाइ
अक्षर पढ़ लाइ
किस्से रट लाइ
कहानी सुना लाइ
पर ज्ञानी अब भी नहीं

बिंदी चिपका ली
मेहँदी रचा ली
पाजेब पहना ली
लिपस्टिक लगा ली
बाली लटका ली
चूड़ियां खनका ली
नथुनी लगा ली
इत्र छिड़का ली
पर सुन्दर तो मैं अब भी नहीं

गाना गा लिया
बाजा बजा लिया
चित्र बना लिया
लेख लिख लिया
खेल कर लिया
नृत्य नाच लिया
भाषएँ सिख लिया
पर कोई फनकार हममे तो नही

पाहन पूजे हरी मिले, तो मैं पूजूं पहार
बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहाँ ते होई
किताबें पढ़े मिले ज्ञान, तो मैं पढूं कुरान
श्रृंगार करे मिले रूप, तो मैं लगाऊँ सिन्दूर हनुरूप
क्रीडा करन आवे फन, उल्टा-पुल्टा करूं तन-बदन

रखो प्याला निर्मल पानी का, मिलेंगे हरी हर बूंदन में
कर भला हो भला, पाओ फल हज़ार
मर्म समझो बनो साक्षर, मिलेगा सबब हर अक्षर
रखो ह्रदय को अभंग, फिर देखो आईने में रंग
रखो हर निश्चय को दृढ, फिर देखो प्रण सुदृढ़

किस्मत कि है और बात, मेहनत कि कुछ और
चोरी कि है और बात, कमाने कि कुछ और
माली कि है और बात, पिता कि कुछ और
किताब कि है और बात, गुरुवर कि कुछ और
आवरण कि है और बात, मन कि कुछ और
इबादत कि है और बात, इश्क कि कुछ और

तुम्हारी है और बात, मेरी है कुछ और
मेरी है और बात, तुम्हारी है कुछ और

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