Khayal ख्याल Poem by Alok Agarwal

Khayal ख्याल

ख्याल

आज फिर आया ख्याल कलम से कुछ उकेरने का,
फिर याद आया कम्पुटर के जमाने में स्याही कहाँ|

नीरस से इस माहौल में मन किया कुछ गाने-गुनगुनाने का,
फिर किसी ने हमें पीछे लिखा ‘Do not disturb' का बोर्ड दिखलाया|

चप्पल पहनकर सोचा कि बाघ में किसी गुलाब को निहारा जाए,
फिर हमें सरकारी अध्यादेश का शहरी ‘lockdown' पढाया गया|

विसाल-ए-यार कि तमन्ना रखकर हम गये उनके कमरे पे,
वहाँ हमने पाया कि छोटे जनाब को ‘mobile पर game' से फुर्सत कहाँ|

अर्धांगिनी का आदेश पाकर रसोड़े में हम गए चाय बनाने,
पर इस बेदर्द ज़माने से हमें kitchen का काम सिखलाया कहाँ|

अलमारी का ताला खोलकर एक किताब से कुछ गुफ्तगू करने कि इच्छा हुई,
जाले हटाया तो याद आया पिछली दिवाली को ही तो बेचा था किसी रकीब को|

बचपन के घिसे-पिटे पुराने दोस्तों से बतियाने का दिल किया,
किस्से करूं, क्या करूं; पहले हम ‘busy' थे, अब वो ‘busy' हैं|

मुद्दत बाद हिमाक़त कर किसी कि महफ़िल में हमने शमा जलाई,
उनकी निगाह भी नही पडी थी कि गैरों ने फूंक मारी और बुझाई|

अब मैं बैठा हूँ एक बंद कमरे में, खिडकियों से निहार रहा हूँ चिडयों को,
एक से दो हुई और दो से तीन और फिर चार; और इस तरह कुनबा बढ़ता गया|

हमने मन-ओ-दिल-ओ-जिगर को तसल्ली दी
बहारें और भी आएँगी,
हम भी नाचेंगे,
खुशियाँ मनाएंगे,
ग़ालिब को हराएंगे
शायद वो भी कब्र से उठें और बोंले, 'आलोक, दिल को बहलाने के लिए ये ख्याल अच्छा है|'

कुछ ख्याविशें जिगर में है
कुछ अर्श पर
कुछ फर्श पर

कभी जीतेंगे, कभी हारेंगे,
पर ज़िन्दगी का कारवां यूँ ही चलता रहेगा

कोई अगर आके हमसे पूछेगा, कि जिया कैसे जाए
तो फिर हम कह देंगे - कुछ इश्क किया, कुछ काम किया
और जो कुछ बच गया, वो वारिस के नाम किया|

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