स्त्री मात्र एक शब्द नहीं एक चरित्र है Poem by KAVITA SINGH

स्त्री मात्र एक शब्द नहीं एक चरित्र है

स्त्री मात्र एक शब्द नहीं एक चरित्र है
खुद में ही सिमट के जो रह जाये ऐसी विचित्र है
अगर तुमपे दिल हार जाये तो सर्वश्वा
समर्पित कर देती है
दिल का क्या है जिस्म का कोना कोना तुमपे निछावर कर देती है
अपनी बातों के स्वाद से तुम्हारे बेस्वाद ज़िन्दगी में मिठास भर देती है
अपने सिंगार के रंगों से तुम्हारी बदरंग जिंदगी में लाखों रंग भर देती है
अपनी प्यारी सी मुस्कान से तुम्हारी जिंदगी की ख़ामोशी को खुशियों में बदल देती है
वो स्त्री है तुम्हारे लिए खुद को भी बदल सकती है
वो शांति शक्ति और दुर्गा भी बन सकती है
वो स्त्री है वो कुछ भी कर सकती है

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