Jaane Wo Kaise Log Hain Poem by Alok Agarwal

Jaane Wo Kaise Log Hain

जाने वो कैसे लोग हैं जो कोयले को बुरा कहते हैं
वो नहीं जानते कि हम जल कर भी काम आते हैं

दीवार बनाने के बाद भी उस पर भरोसा करते नहीं हैं
उसी के बगल में दूसरी फिर खड़ी किये देते हैं

कहते हैं धरा पर सीधे पेड़ पहले काटे जाते हैं
नहीं मानते कि सबसे ऊँचे भी वही पाए जाते हैं

रेगिस्तान में पानी न मिलने पर खुदा को कोसते हैं
जहां गंगा बहती है वहाँ पानी को बोतल में बेचते हैं

प्रदुषण के लिए प्लास्टिक को ज़िम्मेदार ठहराते हैं
फिर भी दुकानदार से एक्स्ट्रा थैली मांगते नज़र आते हैं

मंदिर में दान देकर दुआ कबूल कि अभिलाषा रखते हैं
गरीब के आगे कटोरे में चवन्नी देने से कतराते हैं

चार-पहिया गाड़ियों में घुमते हैं और खुशियाँ भी ढूँढते हैं
बच्चों को कबाड़ में अठखेलियाँ करते देखकर जलते हैं

जहां नहीं हैं वहाँ न रहने का शोक मनाते हैं
और जहां हैं वहाँ क्यूँ है सोचकर बिलखते जाते हैं

सरकार से खुशहाली कि सदैव अपेक्षा करते हैं
वोट देने के नाम पर घर में सो कर समय बिताते हैं

विश्व शान्ति कि मनोकामना के लिए हवन का आयोजन करते हैं
सौहार्द कि बात चलती है तो दुसरे धर्म को कोसते हैं

क़यामत तक राज़ कि बात लबों पर दबा कर बैठे रहते हैं
क़यामत आने पर रकीबों पर अपने दर्द का ठीकरा फोड़ते हैं

नक़्शे पर लकीरें खींचने के सिवा कुछ करते नहीं हैं
दूरियां बढ़ने पर ज़माने को बदनाम करने से चूकते नहीं हैं

प्रतियोगिता होती है हम उनके दीदार में व्यस्त रहते हैं
वो ठहरे शातिर उस्ताद भागकर समंदर पार कर लेते हैं

ग़ज़ल लिखने में हैं इतने मशगूल कि कलम छोड़ते नहीं हैं
मासूम हैं आलोक, जानते नहीं कि वो रैप सुनने जाते हैं

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