Insomnia Poem by Alok Agarwal

Insomnia

क्यूँ न रोयें रात भर
जो तुम ना आये रात भर

सुबह का करते रहे इंतज़ार
सूरज को छुपाते रहे रात भर

सारे मुजरिम हो गए फरार
हम परेशान रहे रात भर

गवाह ठहरे वफादार
इलज़ाम लगाते रहे रात भर

कर लो न मुझे गिरफ्तार
करवटें बदलते रहे रात भर

बारिश होती रही लगातार
आशियाने महकते रहे रात भर

हवाएं मचलती रहीं बारम-बार
शमा जलाते रहे रात भर

पडोसी भी हो गए खबरदार
क्यूँ जगाते हो रात भर

तुम हि हो इसके ज़िम्मेदार
जो आलोक जगते रहे रात भर

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