हौंसला
बेड़ियों मे जकड़ा हुआ हूँ
हथकड़ियों से बंधा हुआ हूँ
पर हौंसले हैं की अभी भी आज़ाद फिर रहे हैं
कोई उन्हे बतलाओ कि शरीर बिन आत्मा का क्या
पर वो कह रहे है मेरे बिन चेतना का क्या
उड़ रहे हैं ऊंचाइयों पर,
लड़ रहे हैं तूफानो से,
सैर कर रहे हैं सैलाबों पर,
कुछ तो बात है,
वरना कमजोर तो हम भी न थे
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