Haunsla Poem by Alok Agarwal

Haunsla

हौंसला

बेड़ियों मे जकड़ा हुआ हूँ
हथकड़ियों से बंधा हुआ हूँ
पर हौंसले हैं की अभी भी आज़ाद फिर रहे हैं
कोई उन्हे बतलाओ कि शरीर बिन आत्मा का क्या
पर वो कह रहे है मेरे बिन चेतना का क्या

उड़ रहे हैं ऊंचाइयों पर,
लड़ रहे हैं तूफानो से,
सैर कर रहे हैं सैलाबों पर,
कुछ तो बात है,
वरना कमजोर तो हम भी न थे

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