Hamara Haal Kaisa Hai Poem by Ahatisham Alam

Hamara Haal Kaisa Hai

समझा दो भला कैसे
मजबूर हो इतना
जो तुम बिन जी नही सकता
उसी से दूर हो इतना
क्यूँ दिल तेरा मुझको
खुद के नाक़ाबिल समझता है
हमारा हाल कैसा है
ना अब तुम्हारा दिल समझता है

बिखर कर मैं अगर रोऊँ
मिलेगा क्या भला मुझको
कि तुम पत्थर की मूरत हो
पता ये चला मुझको
तेरी पूजा करूँ गर मैं
तो तू जाहिल समझता है
हमारा हाल कैसा है
ना अब तुम्हारा दिल समझता है

Thursday, April 7, 2016
Topic(s) of this poem: love
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