Tuesday, April 10, 2018

नश्तर Comments

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मराठी कवि स्व. भुजंग मेश्राम के लिए


पीड़ाओं का विकेंद्रीकरण हो रहा है और दुख का निजीकरण

दर्द सीने में होता है तो महसूस होता है दिमाग में

दिमाग से उतरता है तो सनसनाने लगता है शरीर

प्रेम के मक़बरे जो बनाए गए हैं वहाँ बैठ प्रेम की इजाज़त नहीं

पुरातत्वविदों का हुनर वहाँ बौखलाया है

रेडियोकार्बन व्यस्त हैं उम्रों की शुमारी में

सभ्‍यताओं ने इतिहास को काँख में चाँप रखा है

आने वाले दिनों के भले-बुरेपन पर बहस तो होती ही है

मरे हुए दिनों की शक्लोसूरत पर दंगल है

तीन हज़ार साल पहले की घटना तय करेगी

किसे हक़ है यह ज़मीन और किसके तर्क बेमानी हैं

कौन मज़बूर है कौन गाफ़िल

किसने युद्ध लड़ा आकाश में कौन मरा मुंबै में

बरसों सोच किसने मुँह से निकाले कुछ लफ़्ज़

एक साथ एक अरब लोगों की रुलाहट के बाद उसके

कानों पर वह कौन-सी जूँ है जिसे बेडि़याँ बंधीं

किन किसानों ने कीं खुदकुशियाँ

वी.टी. की एक इमारत ने किया लोगों को रातो-रात ख़ुशहाल

कितने कंगाल हुए भटक गए

हरे पेड़ों की तरह जला दिए गए लोग

जबरन माथे पर खोदे गए कुछ चिह्न

तुलसी के पौधों पर लटके बेरहम साँपों की फुफकार

लाचार घासों को डसने का शगल

इस तरफ़ कुछ लोग आए हैं जो बड़े प्रतीकों-बिंबों में बात करते हैं

इसकी मज़बूरी और मतलब

मालूम नहीं पड़ता

बताओ, दिल पर नहीं चलेंगे नश्तर तो कहां चलेंगे
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Geet Chaturvedi
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Geet Chaturvedi

Geet Chaturvedi

Mumbai / India
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