Sunday, August 18, 2013

ग़म - ऐ - ज़िन्दगी (GAM -E ZINDAGI) Comments

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तेरी क्या थाह पाएं ऐ ग़म - ऐ - ज़िन्दगी,
कुछ देर चलता हूँ, और थम जाता हूँ,
मैं आज बात - बात पर ख़ुद मैं ही सिमट जाता हूँ,
कुछ देर जीता हूँ ज़िन्दगी अपनी और कुछ देर मैं ही मर जाता हूँ,
...
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Nirvaan Babbar
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