हर लिहाज़ से यह एक खुबसूरत नज़्म या कविता है. आँखों की अपनी भाषा होती है और अपने संकेत होते हैं जो बगैर शब्दों के बहुत कुछ कह देने में समर्थ होती हैं- अपने इष्टदेव के प्रति लगाव व भक्तिभाव भी. धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
मुद्दतों से समाये रखा था जिसे दिल में
आँखों ने बयां कर दिया भरी महफ़िल में
ये आँखें क्यूँ ऐसी हुआ करतीं हैं
कुछ भी न कह के सब कुछ कह दिया करतीं हैं
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हर लिहाज़ से यह एक खुबसूरत नज़्म या कविता है. आँखों की अपनी भाषा होती है और अपने संकेत होते हैं जो बगैर शब्दों के बहुत कुछ कह देने में समर्थ होती हैं- अपने इष्टदेव के प्रति लगाव व भक्तिभाव भी. धन्यवाद, बहन पुष्पा जी. मुद्दतों से समाये रखा था जिसे दिल में आँखों ने बयां कर दिया भरी महफ़िल में ये आँखें क्यूँ ऐसी हुआ करतीं हैं कुछ भी न कह के सब कुछ कह दिया करतीं हैं
sundar shabdon se is kavita ko sarahne ke liye hirday se abhaari hun bhai bahut bahut dhanywad.