'कोई तो था आपका रुह का लिबास।
कोई तो था आपका रुह का लिबास।।
जिनको जुदाई कि खाइ मे धकेलनेके
माहिने बाद आइ उनसे जुदाई का एहसास।
कुरेद रहि है अब कलेजेको उनकी गैर मौजूदगी।
किंउ नजर आन्दाज किया तब उनकी सादगी। ।
अगर गमके बूंदे टपक रहि है आंखोसे मोती बनकर ।
तो प्यारिसि इजहार के धागे मे पिरोले उन्हे ओर डाल दे उनपर हार बनाकर। ।'--© दुर्गापुरि बाबु (उर्फ प्रोफेसर हसरत बर्धमानि) DURGAPURI BABU AKA PROF. HASRAT BARDHAMANI
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