हे संसार मोह ग्रस्त प्यारे
तुम्हारे तो गोविन्द दुलारे
कर ले प्यारे प्रभु से प्रेम
ले ले श्रीहरि का सुंदर नाम
कुछ न करेंगे व्याकरण नियम
कर सकेंगे न योग क्षेम धर्म
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।1'
छोड़ दे वैभव संग्रह वासना
त्याग दे सकल जगत कामना,
कर ले सत्य पथ अनुसरण
मिलते परिश्रम से जो धन
रख लो अपने मन सदा प्रसन्न
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।2'
कर मत मोहित मन कलत्र
मांस मज्जा केवल यत्र -तत्र
हमेशा मन में रखना स्मरण
सत्यमेव केवल श्रीहरि वंदनं
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।3'
जीवन कमल दल वारि बूंद समान
अनिश्चितकालीन, सर्वदा न विद्यमान
समस्त जगत अहंकार रोग दुःख पूर्ण
संसार बना सहजता से वेदनापूर्ण
जान ले अब सत्य संभाल ले जीवन
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।4'
वैभवोपार्जन में जबतक समर्थ
तब तक परिजन प्रेम - अर्थ
जब हो जाता शरीर बलहीन
साधारण बात चीत भी व्यर्थ
सत्यमेव श्री कृष्ण नाम केवलम्
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।5*
आयु बीतने पर न रहता काम
सूखने पर न रहता वारि धाम
धनहीन न रह जाता परिवार
तत्वज्ञान होने पर न रहता परिवार
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।6*
शिशुपन रुचि बाल क्रीड़ा
यौवन स्त्री संग यौवन ब्रीड़ा
वृद्धावस्था सताती चिंता
प्रभु चरित्र से न भाव भरिता
श्रीहरि विष्णु नाम केवल सत्यम्
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।7*
कौन तुम्हारी वामा कौन सुत
कहां से आए, कौन तेरा वित्त,
यह संसार बना अजब विचित्र
इस बात पर कर लो विचार
संसार संस्कृति न पूर्ण आधार
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।8*
सत्संग से हो जाता वैराग्य
वैराग्य से उत्पन्न होता विवेक
विवेक से उद्भवित तत्व ज्ञान
तत्व ज्ञान से मिल जाती मुक्ति
शेष अन्य संभ्रमम् केवलम्
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।9*
आयु बीतने पर न रहता काम
सूखने पर न रहता वारि धाम
धनहीन न रह जाता परिवार
तत्वज्ञान होने पर न रहता परिवार
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।10*
पुनरपि जन्मं, पुनरपि मरणम्
पुनरपि जंननी जठरे शयनम
संसार सागरे पार गमनम्
कृपां कुरु हे हरि महानतम
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।11
कौन तुम्हारी वामा कौन सुत
कहां से आए, कौन तेरा वित्त,
यह संसार बना अजब विचित्र
इस बात पर कर लो विचार
संसार संस्कृति न पूर्ण आधार
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
धन बल यौवन का न रख गुमान
कर देता काल सहजता से संहार
माया को विश्व से आवृत्त जान
ले ले श्रीहरि परमात्मा की शरण
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्री सीताराम नाम संकीर्तन।।11
दिन रात सुबह शाम आते जाते
सर्दी वसंत बारंबार नियम दुहराते
समय साथ सब बदलते रहते
जीवन नष्ट भ्रष्ट होता रह जाता
आकांक्षाओं का कभी अंत न होता
इन इच्छाओं का कभी विराम न होता
आवश्यक अभिलाषा मरण
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।12
कौन तुम्हारी वामा कौन सुत
कहां से आए, कौन तेरा वित्त,
यह संसार बना अजब विचित्र
इस बात पर कर लो विचार
संसार संस्कृति न पूर्ण आधार
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
पुनरपि जन्मं, पुनरपि मरणम्
पुनरपि जंननी जठरे शयनम
संसार सागरे पार गमनम्
कृपां कुरु हे हरि महानतम
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।12अ
पत्नी धन की चिंता क्यों अधिक
क्या उनका कोई न अपना हित
केवल संत सुसंस्कृत संग उद्धार उपाय
भवसागर तरुण कर न और उपाय
भज ले गोविन्द हरि शरण
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।13
13अ
द्वादश गीतों के सुमनहार
भगवान शंकर तारणहार
किए गए समर्पित
वैयाकरण ने कर डाला उसे प्रभु चरण अर्पित।
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
14
बढ़ी जटाएं केश रहित सिर
काषाय बसन, विविध वेशभूषा
उदर पोषण हेतु किए जाते धारण
अरे मोहित मूढ़! करते क्यों कर्म,
हृदय विदारण?
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
15
क्षीण अंग, श्वेत बाल
दंत रहित मुख, करकमल दंड
आयु वृद्ध, आशा पाश बंधा बंदा
कब लौकिक सुख पाश बंधें
और
कभी नहीं मरे
लेकिन...
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
16
रवि अस्त अंतराल
निशाकाल तिमिर में अग्नि जलाकर
घुटनों में सिर छिपा शीतत्रास से त्राहि-त्राहि कर्ता
करपात्री बन भिक्षाभोगी
तरुवर छाया निवासी
इच्छा बंधन से न हो पाता मुक्त
दास बनने का रहता संतत अभिलाषी।
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
17
किसी भी मतानुसार
मात्र गंगासागर गमन, व्रत, दान से
शत कोटि जन्मों में न मिल सकती मुक्ति
कर ले कोई भी युक्ति।।
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
18
देव मंदिर या तरुवर निवास
पृथ्वी जैसी शय्या
एकाकी या सर्व सुख त्याग वैराग्य से
किसे न आनंद होगा प्राप्त?
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
19
योगरत हो या भोगरत
असंग हो या निसंग
किंतु जिसका मन परमात्मा में रत
वही रहता आरुढ़ भक्ति पथ
करता आनंद
निर्विकार भाव।
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
20
किया जिनने
श्रीमद्भगवद्गीता अध्ययन
किए भक्ति गंगा जल का अल्प कण
भगवान विष्णु का एक बार अर्चन
रविसुत भी न लेते उनका नाम
सहज सुलभ पूर्ण हो जाते उनके काम।
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
21
पुनरपि जन्मं पुनरपि मरणम्
पुनरपि जंननी जठरे शयनम
बारंबार जन्मं -मरणं
संसार सागर तरणं
हे कृष्ण! कुरुं कृपा, पाहि पाहि रक्षणम्।
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
22.
रथ चक्र अधोहता बसन विदीर्णा
पुण्य पाप रहित पथगामी
एकध्याना योगी
बालक समान रहते आनंदित पुलकित।
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
23
मैं कौन, कहां से आया
कौन माता, कौन पिता
सब प्रकार से संसार असार
स्वप्न समान समझ त्याग
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
24
तुममें मुझमें अन्यत्र
सर्वव्यापी विष्णु निवास
करते क्यों किसी पर क्रोध
यदि चाहते हो परम शाश्वत विष्णु परम पद
कर लो चित्त सभी के लिए समान
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
25
शत्रु हो या मित्र
पुत्र हो या बंधु
किसी से मत करो द्वेष
न दो किसी को क्लेश
सबमें देखो अपने आप को
त्याग दो भेद रुप अज्ञान
यही विशुद्ध विज्ञान
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
26
छोड़ काम क्रोध लोभ मोह
स्वयं स्थित में होकर कर विचार
मैं कौन?
जो आत्मज्ञान से रहित मोहित जन
पड़ते रहते संसार में बारंबार
भोगते रहते यातना
करते रहते कल्पना
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
27
गाओ भगवान विष्णु सहस्रनाम
सुंदर स्वरूप का कर लो ध्यान
मन लगाओ अपना सज्जनों के संग
गरीबों की सेवा में लगाओ अपना धन
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
28
करते सुख के लिए लोग आनंद भोग
हो जाते शरीर में तब रोग
धरती पर मरण सबका निश्चित
फिर भी पाप कर्म न छोड़ते
यह सर्वविदित
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।
29
धन अकल्याणकारी
इससे सुख न सकता मिल
कीजिए विचार प्रतिदिन मन में
धनवान डरते अपने सुत से
यह जानकारी है सबको ही
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
30
प्राणायाम प्रत्याहार उचित आहार
नित्य संसार
करो अनित्यता का पूरा विचार
जप लो प्रभु का पावन नाम
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
31.
मान लो श्रीगुरुदेव चरण आश्रय
भक्त हृदय से हो जाओ शरणागत
आवागमन से हो जाओ मुक्त
कर लो मन इन्द्रिय का निग्रह
समाधि पर दो हमेशा ध्यान
यही करेगा तुम्हारा त्राण
कर विराजमान प्रभु प्रियतम दर्शन
भज ले गोविन्द हरि शरणम्
श्रीसीताराम नाम संकीर्तनं।।
'नवीन '
24जून
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