बधैया Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

बधैया

अवधपुरी महं प्रकट भये रामचन्द्र रघुरैया रे।
चलो चलो हम देखि आवैं परमानंद सुखदैया रे।
प्रति गृह द्वार नगाड़े बाजत, महामंगल बधैया रे।
हर्षावत सब उमंग आनंद भरि, गावत करि ता -ता थैया रे।
गृहस्थ यती योगी विरागी धाये, लखिबे को आनंदसिंधु समैया रे ।
सुर सब गावत अस्तुति गान करि, करत सुमन बहुरंग बरसैंया रे।
बाजत ताल मृदंग पर भरि भरि, तान राग अलापत गवैया रे।
अप्सरा सब आनंदित जुड़ि धाईं, बहु बिधि होत नचैया रे।
पुरी बनितागण सजि सब आईं, करत चौके मंगल पुरैया रे।
बिबिध भांति नेवछावरि करत, शिशु बारहिं बार बलैया रे।
बिप्रवर आई स्वस्तिक वाचन करत, उमगत आनंद समैया रे।
दशरथ राजा लुटावत भूषण बसन, याचकगण करत लुटैया रे।
महल अटारी भई भीड़ भारी, जुड़ि आये लोग लुगैया रे।
रामजन्म कर उत्सव जानि, सकल तीर्थ करत जुटैया रे।
विहरत अवध प्रति बीथिन्ह, लूटत आनंद सुख बढ़ैया रे।
महामंगल आजु पुरी महं छाये, शोभा सुख सरसैया रे।
'नवीन'निहाल भयो लखि लाल मुख, बारहिं बार रमैया रे।

*
आजु कौशल्या कोख प्रकट भये रामचन्द्र रघुबर हो।
होत अवधपुरी मंगल उछाह, उमगत पुर नारी नर हो।
गृह गृह बजत बधैया, विविध वाद्य गूंजत रव हो।
नगाड़े ढोल मृदंग वीणा बाजत, वेणु करत मंगल स्वर हो।
कोकिल बयनी सब मंगल गावत, बरसावत पुहुपदल हो।
हरित बंदनवार सुभग सजाओल, नवल हरित आम्रपत्रदल हो।
मंगल चौके चारु पुरायल, कौशल्या लिए लालन मनहर हो।
सुरनारी रमणीवृन्द समाओल, शोभत सुभगवर हो।
शोभित नवजात सुवन सुकुमार, करत सब सुभग दर्शन हो।
नारी वृन्द सब उमगावत, हर्षत करत सब नृत्यन हो।
दशरथ राजा लिए हंकारि, बिप्रवर याचकगण हो।
उमगत हिय अपार आनंद, करत दान हय गज मणिगण हो।
आनंद उमगत अवधपुरी, होत उछाह मनभावन हो।
'नवीन'दर्शन करि रघुबर, युवराज हिय हुलसावन हो ।

**
आजु कौशल्या कोख प्रकट भये रामचन्द्र रघुबर हे।
होत अवधपुरी मंगल उछाह, उमगत पुर नारी नर हे।
गृह गृह बजत बधैया, विविध वाद्य गूंजत मधुर रव हे।
नगाड़े ढोल मृदंग वीणा बाजत, वेणु करत मंगल स्वर हे।
कोकिल बयनी सब मंगल गावत, बरसावत पुष्पदल हे।
हरित बंदनवार सुभग सजाओल, नवल हरित आम्रपत्रदल हे।
मंगल चौके चारु पुरायल, कौशल्या लिए लालन मनहर हे।
नारी वृन्द मिलि समाओल, सोहत सुभगवर हे।
सोहत नवजात सुवन सुकुमार, करत सुभग दर्शन हे।
नारी वृन्द सब उमगावत, हर्षत करत सब नृत्यन हे।
दशरथ राजा लिए हंकारि, ब्रिप्रवर याचकगण हे।
उमगत हिय अपार आनंद, करत दान हय गज मणिगण हे।
आनंद उमगत अवधपुरी, होत उछाह उमंग समैया हे।
'नवीन'दर्शन करि रघुबर, युवराज लखि लेत बलैया हे।
*
सुन री माई, सुन री माई! कोशलपति सुवन जन्म लिए।
राजाजी घर होत मंगल आनंद, अवध नारी नर उमंग हिये।
महीपति आंगन चारिउ रत्न, चारों सुवन एक बार भये।
बिधाता पहले रह्यो बनि कृपणत जोर, गुरु कृपा मंगल उदार भये।
ऋषिवर सृंग वशिष्ठ यज्ञ कराये, पायस प्रसाद सब रानी दिये।
कौशल्या कैकेई एक सुत पाये, सुमित्रा दोऊ करकमल बालक लिए।
गृह गृह बाजत मंगल बधैया, वाद्य वृन्द बहु नाद किये।
देव बजावत दुंदुभी गगन, सुमन वर्षा बहुरंगी किये।
अवधपुरी नर नारी सुभाल सुशोभित, देवन सब श्रृंगार किए।
देवन बरसावत ग़रमाल लड़ी, अवध नारी नर धारण किए।
अबीर कुंकुम गुलाल उड़त भरपूर, धूलि धूरि नभ पूरे पूरि रहे।
साधु संत गृहस्थ विरक्त यति, रमणी युवती बाल मार्ग भूलि गये।
गावत नाचत हर्षत पुर नारी नर, चहुं ओर आनंद बरसि गये।
'नवीन'लखि लखि जन्म महोत्सव, भये निहाल सकल मनोरथ पूरन भये।
*
घर घर अवध आनंद बधैया बाजै हो।
प्रति द्वारे लगे बंदनवार हरित पत्र भ्राजै हो
बीथिन्ह कुसुम सुहावन, सोहैं सुभगदल हे।
बीच बीच मधि राजत सुभग कमलदल हे
अजिर मंगल चौके पूरे, मणिमय मनभावन हे।
शोभा नहिं कहि जाई, सुरलोक लजावन हे
बाजत ढोल करताल मृदंग वीणा वेणु धुनि सुहावन हे।
कोकिलबयनी करत मंगल गान गंधर्व लजावन हे।
अप्सरा उमगाई नाचत, लखि अवध नरनारी हो।
नाचि नाचि मांगत नेग निज आंचल पसारि हे।।

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Devotional
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success