श्री कनकधारा स्तोत्र Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

श्री कनकधारा स्तोत्र

श्री कनकधारा स्तोत्र
भावानुवाद
डा नवीन कुमार उपाध्याय

आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कनकधारा स्तोत्र (हिंदी काव्य)




ॐ अङ्गं हरै (हरेः) पुलकभूषण-माश्रयन्ती भृङ्गाऽगनेव मुकुला-भरणं तमालं |
अंगीकृता-ऽखिलविभूतिर-पॉँगलीला-माँगल्य-दाऽस्तु मम् मङ्गलदेवतायाः || १ ||


जिनका श्रीअंग श्रीहरि करुणा पूरित नयन पलक से उसी प्रकार आवृत्त -सुशोभित ।
जैसे भ्रंवरावलियां तमाल तरुवर आश्रिता रहतीं सजी भ्राजित।।
माला तप्त देदीप्यमान पीतवर्णास्वर्णाभूषण समान जिन श्रीअंग।
महामांल्यमयी देवी, महिमामयी मंगलदात्री अधिष्ठात्री रंग।।
सभी महिमाओं को स्वीकार किया है, जिन संपूर्ण ऐश्वर्य की खानि
मुझे कृतार्थमयी शुभ महान मंगल प्रदान करने की कृपा करें वह रसखानि।।



मुग्धा मुहुर्विदधी वदने मुरारेः प्रेमत्रपा प्रणि-हितानि गताऽगतानि ।
मला-र्दशोर्म-धुकरीव महोत्पले या सा में श्रियं दिशतु सागर सम्भवायाः || २ ||

भ्रमरी जैसे महान कमल दल पर है मंडराती रहती ।
उसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद ओर अनायास प्रेमपूर्वक जाती रहतीं।
लज्जा कारण लौट आती, करती बारंबार मुखमंडल दर्शन।
समुद्रसुता महालक्ष्मी मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला करें प्रदान विपुल ऐश्वर्य संपत्ति धन।।

विश्वामरेन्द्र पद-विभ्रम-दानदक्षमा-नन्दहेतु-रधिकं मुरविद्विषोपि |
ईषन्निषीदतु मयि क्षण मीक्षणार्धं-मिन्दीवरोदर सहोदर-मिन्दीरायाः || ३ ||

सुर समाज स्वामी इंद्र को पद वैभव-विलास देने में समर्थ।
मधुहंता नामक दैत्यसंहारी श्रीहरि उल्लास कारिणी में बनतीं अर्थ।।
नीलकमल सहोदर श्रीभ्राता जिनके परम प्रियवर ।
उन महादेवी श्रीलक्ष्मी अर्द्धनयन कृपाकोर पड़ें पल भर मुझ पर ।।

आमीलिताक्ष-मधिगम्य मुदा-मुकुन्दमा-नन्द कंद-मनिमेष-मनंगतन्त्रं |
आकेकर स्थित कनीतिक-पद्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्ग शयाङ्गनायाः || ४ ||

नयन पलक -भ्रू शर सहज काम भाव स्वीकार कर होतीं अर्धविकसित।
एकटक दृग दृष्टि भाव आनंद सच्चिदानन्द मुकुंद पा कर होतीं वक्र किंचित्।।
अपने निकट पाकर किंचित ।।
ऐसे शेषशायीपर भगवान नारायण अर्द्धांगिनी श्रीमहालक्ष्मीजी के नयन ।
हमें करते रहें प्रदान करुणा कृपा कोर धन-संपत्ति बल ऐश्वर्य धन।।

बाह्यन्तरे मुरजितः (मधुजितः) श्रुत-कौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याण-मावहतु में कमला-लयायाः ॥ ५ ॥

भ्राजित भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल सप्रेम।
इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होना जिनके क्षेम।।
श्रीहरि हृदय मन प्रेम पोषण संचालिका विधायिका ।
कमल-कुंजवासिनी कमला कटाक्षमाला बनें, सर्वसाधिका पोषिका।।

कालाम्बुदालि ललितो-रसि कैटभारे-र्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव |
मातुः समस्त-जगतां महनीय-मूर्तिर्भद्राणि में दिशतु भार्गव-नंदनायाः || ६ ||

कृष्ण घन घटा में देदीप्त विद्युत जैसे ज्योतिर्मान व्याप्त ।
मधु-कैटभारि भगवान हरि हृदय विराजमान सदैव आप ।।
अपने अविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया जिनने।
त्रैलोक्य जननी, भगवती लक्ष्मी सदैव जननी रहें केवल अपने।।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत प्रभावा-न्मांगल्य-भाजि मधुमाथिनी मन्मथेन |
मय्यापतेत्त-दिह मन्थर-मीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालय-कन्यकायाः || ७ ||

अर्थ -
समुद्रसुता महालक्ष्मी महादेवी कमला मन्द, अलस सरस कृपापूर्ण नयन।
आधे खुले नयन पल जिसके प्रभाव से कामदेव ने किए प्रवेश मंगलमय भगवान मधुसूदन।।
वह कृपापूर्ण नयन बारंबार पड़ते रहें मुझपर बारंबार।
विनती मेरी सदा करबद्ध अनुरोध, प्रणाम हे महादेवी! अनंत कोटि सहस्र हजार।।

दद्याद दयानु-पवनो द्रविणाम्बु-धारामस्मिन्न-किञ्चन विहङ्ग-शिशो विषण्णे |
दुष्कर्म-धर्म-मपनीय चिराय दूरं नारायण-प्रणयिनी-नयनाम्बु-वाहः ॥ ८ ॥

भगवान श्रीनारायण प्रियतमा महालक्ष्मी कृपापूर्ण नयन मेघ।
अनुकूल पवन भाव प्रेरित हो कर दें कृपापूर्ण स्नेह ।।
धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध धाम को चिरकाल के लिए करें विलग।
विषाद रुप धर्मजन्य ताप से पीड़ित हम दीन रूपी चातक
धनरूपी जलधारा की वृष्टि करें, हम बन गए हैं पातक।।

इष्टा-विषिश्टम-तयोऽपि यया दयार्द्र-दृष्टया त्रिविष्ट-पपदं सुलभं लभन्ते ।
दृष्टिः प्रहष्ट-कमलोदर-दीप्ति-रिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्कर-विष्टरायाः || ९ ||

विशिष्ट बुद्धिवाले भक्तजन करते प्राप्त कृपा, सहज हो जाते निहाल।
पद्मासना पद्मा की वह करुणा पूरित कृपा करते रहें मेरे भाल विशाल।।
विकसित कमल गर्भ समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि करें प्रदान।
महालक्ष्मी महादेवी साम्राज्ञी मुझे दें अभयता का वरदान।।

गीर्देव-तेति गरुड़-ध्वज-सुन्दरीति शाकम्भ-रीति शशि-शेखर-वल्लभेति |
सृष्टि-स्थिति-प्रलय-केलिषु संस्थि-तायै तस्यै नमस्त्रिभुवनै-कगुरोस्तरुण्यै || १० ||

जो माँ भगवती सृष्टिक्रीड़ा पल वाग्देवता रुप विराजमान ।
पालनक्रीड़ा पल विष्णु-पत्नी लक्ष्मी स्वरुपा शोभायमान।।
प्रलय क्रीडा पल पार्वती भगवान शंकर की पत्नी के रूप में विद्यमान ।।
करते प्रणाम हम बारंबार उन त्रैलोक्य एकमात्र गुरु पालनहार ।
विष्णु की नित्य यौवना प्रेमिका भगवती लक्ष्मी को मेरा सम्पूर्ण नमस्कार ।।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभ-कर्मफल-प्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्ण-वायै |
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्र-निकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तम-वल्लभायै || ११ ||

हे माता! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम बारंबार ।
रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको है नमस्कार ।।
कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को है नमस्कार ।
पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार, प्रणाम करते हम बारंबार।।

नमोऽस्तु नालीकनि-भाननायै नमोऽस्तु दुग्धो-दधि-जन्म-भूत्यै |
नमोऽस्तु सोमा-मृत-सोदरायै नमोऽस्तु नारायण-वल्लभायै || १२ |
कमल बदना कमला महादेवी श्री को नमस्कार बारंबार।
क्षीरसिंधु सभ्यता महादेवी श्रीदेवी को नमस्कार ।।
चंद्रमा - सुधा सहोदर भगिनी सगी भगिनी को नमस्कार ।।
भगवान नारायण की वल्लभा को हैं नमस्कार।।

नमोऽस्तु हेमाम्बुज पीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डल नयिकायै ।
नमोऽस्तु देवादि दया-परायै नमोऽस्तु शारङ्ग-युध वल्लभायै || १३ |
स्वर्ण कमलासन आसीना महादेवी साम्राज्ञी को नमस्कार।
भूमण्डल नायिका को बारंबार नमस्कार।।, देवताओ पर दयाकरनेवाली महादेवी को नमस्कार।
शाङ्घायुध विष्णु की वल्लभा शक्ति को नमस्कार बारंबार।।

नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै नमोऽस्तु विष्णोरुरसि संस्थितायै ।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै || १४ ||
भगवान् विष्णु के वक्षःस्थल विलासिनी को नमन।
श्रीहरि हृदय निवास करनेवाली देवी को नमन। कमलासन आसीना महादेवी साम्राज्ञी को सप्रेम वंदन ‌।
दामोदर प्रिय लक्ष्मी, आपको मेरा बार-बार नमन।।

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै |
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ॥ १५ ॥

अर्थ - भगवान् विष्णु की कान्ता को प्रणाम।, कमल के जैसे नेत्रोंवाली महादेवी को वंदन।त्रैलोक्य उत्पन्न करने वाली महादेवी को नमस्कार
देवता पूजित, नन्दात्मज वल्लभा श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार ।।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय-नंदनानि साम्राज्य-दान-विभवानि सरो-रुहाक्षि ।
त्वद्वन्द-नानि दुरिता-हरणो-द्यतानी मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये || १६ ||

अर्थ - कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय मां महादेवी!
आपके चरणों में प्रणाम! संपत्ति प्रदान करने वाली, हे देवी
! संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाले, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत ।।
सदा मुझे ही अवलम्बन दें, मिलें मुझे, आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर, सदा हम अवनत।।

यत्कटाक्ष-समुपासना-विधिः सेव-कस्य सकलार्थ-सम्पदः ।
सन्त-नोति वचनाङ्ग-मानसै-स्त्वां मुरारि-हृदयेश्वरीं भजे ॥ १७ ॥

जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई सप्रेम उपासना।
उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करतीं आराधना।।
श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का करता नमन।
मैं मन, वाणी और शरीर से करता रहता सदैव भजन।।

सरसिज-निलये सरोज-हस्ते धवल-तमांशुक-गन्धमाल्य-शोभे ।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन-भूतिकरि प्रसीद मह्यं ॥ १८ ॥

हे भगवती नारायण की पत्नी आप कमल में निवासिनी ।
करकमल युगल सुभग नीलकमल विलासिनी । धवल नवलवर श्वेत बसन घ्राण माला आदि सुशोभित ।
आपकी झांकी बड़ी मनोहर है, अद्वितीय है, हे महादेवी!
त्रिभुवन ऐश्वर्य प्रदात्री, मुझ पर भी प्रसन्न हों देवी अधिष्ठात्री!

दिग्ध-स्तिभिः कनककुम्भ-मुखावसृष्ट-स्वर्वाहिनी-विमलचारु-जलप्लु तांगीं ।
प्रात-र्नमामि जगतां जननी-मशेष-लोकाधिनाथ-गृहिणी-ममृताब्धि-पुत्रीं || १९ ॥

दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलश के मुख समर्पण । आकाशगंगा के स्वच्छ और मनोहर जल अर्पण।
भगवान के श्रीअंगो का होता जिनसे संप्रेम अभिषेक ।
उस लोको के अधीश्वर भगवान हरि प्रिया को नमस्कार।
, समुद्र तनया जगतजननी भगवती लक्ष्मी को प्रातःकाल नमस्कार बारंबार ।।

कमले कमलाक्ष-वल्लभे त्वां करुणा-पूरतरङ्गी-तैर-पारङ्गैः ।
अवलोक-यमां-किञ्चनानां प्रथमं पात्रम-कृत्रिमं दयायाः || २० ||

अर्थ - कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले! हे महादेवी!
मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूं, हे माता महादेवी!
तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र, हे करुणामई!
तुम उमड़ती हुई करुणा बाढ़ तरंगों समान कटाक्षों से मेरी ओर देखो। हे देवी!

स्तुवन्ति ये स्तुति-भिरमू-भिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवन-मातरं रमां ।
गुणाधिका गुरु-तरभाग्य-भाजिनो (भागिनो) भवन्ति ते भुवि बुध-भाविता-शयाः || २१ ||

जो इन स्तु‍तियों से प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी - स्तुति करते। ।
वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते ।।
विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते ।
आचार्य करुणा कृपा से नवीन आनंदित सदैव रहते।।

ॐ सुवर्ण-धारास्तोत्रं यच्छंकराचार्य निर्मितं |
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं स कुबेरसमो भवेत || २२ ||

आद्यगुरु शंकराचार्य विरचित स्तोत्र का (कनकधारा) का करता पाठ ।
श्रीगुरुदेव सुसंत कृपा से हो जाता महादेवी संग साथ।।।

॥ इति श्रीमद्द शंकराचार्य विरचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्णं॥

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