जब सूर्यास्त के समय,
मेरा गांव सोने जा रहा था,
तब मैं आधी नींद से जागा और
साप्ताहिक बाजार के दिन,
लोगो की आवाजाही, हलचल
तेज कदमों के आहट और
नाम से परिचित मेरे कानो को
स्वर सुनाई पड़ते थे।
अब मुझे संध्याकाल के शब्दों की,
खुश्बू फैलाती उन तस्वीरों और
बीते दिनों के वो हरेक लम्हे,
और पल याद आते है ।
मैं इस बात से बिलकुल अनजान था,
कि मेरे पिता अपने पूरे जीवन से,
संघर्ष करते हुए किस विषम परिस्थिति
और कड़ी चुनौती से गुजर रहे थे ।
मैं किराने के बंडल के सामान खुलते ही
इस आशा के साथ बैठ जाता था
कि इसमें कहीं मेरी चाहत छुपी हुई जरूर है ।
जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार रहा,
मेरी चिंता तब तक बढ़ी रहती थी,
जब तक मेरे पिता के गमछे में बंधे हुए
एक दर्जन बेर मुझे नही मिल जाते I
वो मिलते ही मेरे दिल को एक रूहानी,
खुशी और मन को तसल्ली मिलती थी,
जैसे मैने चांद को छू लिया हो ।
बेर का ऊपरी आकार चमकदार
चिकना और पतला था ।
लेकिन, एक कसावट भरे त्वचावाले
चंद हरे रंग के गहरे पीले और
भूरे रंग के कुरकुरे और सफेद गुदेवाले,
रसभरे और स्वादिष्ट मीठे फल,
मेरी कुछ उम्मीदों के कारण बढ़ी हुई,
मेरी भूख को शांत किया,
जबकि एक सुखदायक अहसास,
मेरे मन के आकाश में सुख का,
अद्भुत, अदितीय और अकल्पनीय,
प्रकाश फैला चील की तरह उड़ गया ।
ये मुझसे कदापि मत पूछो
कि आखिर बेर मुझे इतना दीवाना
क्यों बना दिया?
कवि बिष्णुपद सेठी की अंग्रेजी कविता एप्पल बेर का हिंदी अनुवाद । अनुवाद । कवि - गीतकार रमेश शर्मा
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