Bhikharan Poem by Rahul Awasthi

Bhikharan

वो दो लाल आँखे

रोड का डिवाइडर
और डिवाइडर के बीच में
वो दो लाल आँखे
दर्द से कराहती सिसकती
रोती बिलखती
अनजान लोगो से
आशाओ और मदद की भीख माँगती
जी हाँ भीख
मग़र
भीख रोटी की नही
भीख की काश
की काश कोई कम कर पाये ये दर्द जो यमराज सा प्रतीत होता है
ये दर्द जो जीवनभर के सुखद क्षण भूलकर उन्हें रोने पर विवश कर देता है
रोड का डिवाइडर
और डिवाइडर के बीच में
तड़पती वो दो लाल आँखे
उन्हें ये नही मालूम की
ये दर्द जो उन्हें घेरे हुए है
ये दर्द जो रोज रोज दस्तक देता उनकी परीक्षा लेता लेता है
ये दर्द दिन रात, सुबह शाम के लिए उनका दामन पकड़ कर क्यों बैठ गया है
जिस तरह कोई ज़िद्दी बालक खिलौने लेने के हट में बैठ जाता है
रोड का डिवाइडर
और डिवाइडर के बीच में
बिलखती वो दो लाल आँखे
स्वयं बिलकुल अनजान हैं
इस प्राणघातक पीड़ा से
उन्हें नही मालूम की वो इसे क्या समझे, क्या नाम दे
शयद
पेट दर्द?
पेट दर्द? ?
बस
बस यही एक नाम है जो उन्हें जान पड़ता है
यही एक नाम है जो उनके शब्दकोश में है
यही एक नाम है जो वो रोती बिलखती हुई
लोगो को
समझती या बताती हैं
दर्द दिन पर दिन बढ़ने लगा
और उनकी सिसकियाँ कब चीखो में
बदल गयीं मालूम नही
अब वो दो लाल आँखे डिवाइडर के बीच में चीखती बिलखती बिखरने लगी
दर्द और पीड़ा से
जीवन की सभी आशाएं धूमिल होने लगी
रोड का किनारा
और किनारे से डिवाइडर की और झाँकती हज़ारो आँखे
उन दो लाल आँखों को घूरती जरूर है
मग़र
मग़र उनकी चीखो और सिसकिया को
उनकेअभिनय का हिस्सा भर मान
बड़ जाती है आगे

रोड का किनारा
और किनारे से डिवाइडर की और घूरती
दो अनजान आँखे भी
डिवाइडर पर बैठी उन दो लाल आँखों को ऐसी लगती है, मानो
आशा रूपी किरण झाँक रही हो किसी अँधेरे कमरे में से
ये आशा तो बांधती है कि
दर्द कुछ कम होगा
मग़र
मग़र रोड के किनारे से घूरती वो दो अनजान आँखे एक पल के लिए
रूकती जरूर है
मगर
मगर उनके चीखने बिलखने को
उनके अभिनय का हिस्सा भर मान
बड़ जाती है आगे
और जीवन की सभी आशाएं
उड़ती हैं,
और उड़ती हुई धूल के साथ कही
गुम हो जाती हैं

रोड का डिवाइडर
और डिवाइडर के बीच में
वो दो लाल आँखे
अब मौजूद नही रहीं
लगता है बन गयीं हैं वो काल ग्रास
मग़र
मग़र वो डिवाइडर अब भी साक्षी है
उस दर्द का
उस बिलखने का
उन चीखो का
और रोड के किनारे खड़ी वो दो अनजान घूरती आँखे
आज कुछ शर्मिन्दा हैं
शायद
शायद समझ गयी है कि
कि जो चीखे जो दर्द
वो रोज देखा करताथा
कोई अभिनय नही था
और काश
और काश वो कुछ कर पाता
कुछ कर पाता उन
चीखती बिलखती डिवाइडर पर मौजूद दो लाल आँखों के लिए🙂..

Saturday, February 18, 2017
Topic(s) of this poem: life,reality
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
क्या हो अगर किसी भीख मांगने वाले को कोई बड़ी बीमारी हो जाए...इसी पर आधारित है मेरी कविता
COMMENTS OF THE POEM
The Preacher 27 February 2017

Wonderful creation, amazingly written! :)

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