Tuesday, May 31, 2016

##aurat Tere Roop Anek ## Comments

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## औरत तेरे रूप अनेक ##

औरत तेरे रूप अनेक, पर तु लाखों मे है एक।
क्यूँ समझें तु खुद को छोटा, दिल मे झाँककर अपने देख।
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Kumar Sawariya
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Rajnish Manga 31 May 2016

औरत तेरे रूप अनेक, पर तु लाखों मे है एक। क्यूँ समझें तु खुद को छोटा, दिल मे झाँककर अपने देख। जिसके बिना घर और समाज का अस्तित्व संकट में आ जाता है, उस औरत को अपना अस्तित्व ही प्रश्नों से घिरा नज़र आने लगे, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. एक उद्देश्यपूर्ण कविता शेयर करने के लिये धन्यवाद, कुमार सावरिया जी.

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Kumar Sawariya

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