किससे करू शिकायत किसको नखरे दिखाऊं
बिन तेरे मैं तो खुद को हर कदम पे तन्हा पाऊं
हर कदम पे मेरे हमेशा तू साथ मेरे होता था
हसता था सामने हमारे हमेशा भले पिछे छुप कर रोता था
तुझसे मांग पैसा उड़ाने वाला अब कही खो गया है
जॉब ओर घर हो गई है जिन्दगी, तेरा बेटा बड़ा हो गया है
दस बजे भी जो बिस्तर से ना उठता था,
कड़वे लगते थे बोल तेरे...जो तु उस वक्त कहता था
छह बजे उठने लगा है अब तेरा लाडला,
अब दिन भर सब की सुनता है
जो ना तेरी एक कभी सुनता था...
नही आयेंगे कोई काम जो ना हो पहचान कोई
उस वक्त जो ये तेरा कहा मैं समझ जाता
पापा तेरा लाडला ना यूं भीड मे खुद को तन्हा पाता
नहीं चाहिए महंगे कपड़े, गाड़ी...नही किसी की जरूरत है
मेरी आंखे ढूंढ रही पापा बस इक तेरी ही सुरत है
नहीं होने देता मैं अब शिकायत किसी को
सब अच्छे से संभाल लेता हूं
लेकिन ये भी सच है पापा
आपकी कमी को हर पल मैं महसूस करता हूं
कर लो चाहे जितना गुस्सा चाहे छड़ी भी उठा लेना
एक बार वापस आ जाओ पापा
बिखरा पड़ा हु बिन तुम्हारे...
बस एक बार आकर गले से लगा जाओ पापा...
©आशीष सिंह
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