कब तक चुप रहे आखिर उसको भी कहना है
बहोत हो गया अब और ना उसको सहना है
माना की शर्म हर नारी का गहना है
चुप रह जाती है हर सितम सह जाती है
अपने खुश रहे इसलिये...खुद को ही खो जाती है
अब और नहीं ये गहना उसको पहनना है
बहोत हो गया अब और ना उसको सहना है
भाई के लिए कभी अपने सपनों को मारा
मां, बाप की पगड़ी रहे सलामत
इसलिये खुद के अरमानो को जला डाला
छोड़ बाबुल की गली अंजान के साथ चली जाती है
लगा लेती है ताला मुख पे जाने चाभी कहां फेंक जाती है
क्यों छोड़ प्यार की चूड़ियां...बेड़ियां पहनना है
बहोत हो गया अब और ना उसको सहना है
आख़िर कब तक नारी को बता महान
इंसान फ़ायदा उसका उठाएगा
ममता भरी नदी में और कितना जहर मिलाएगा
जिस दिन टूटा बांध नारी के सब्र का
उस दिन तो बस महाप्रलय आएगा
©Mysteriouswriter
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