शिद्दत Poem by Ashish Singh

शिद्दत

इतनी शिद्दत से चाहेंगे की
खुदा को भी जमीन पर आना होगा
ख्वाहिश नही चाहत तुम्हारी
बस तेरी याद को इस दिल से मिटाना होगा

क्यु हाथ थाम मेरा
ले जाती हे ये यादे तेरी
रोक भी नही पाता दिल
जबकी नही होती मर्जी मेरी

जाने क्यु चल पड़ते है उन राहो पे
जहा कुछ नही मिलता सिर्फ दर्द और आहो के

डुबना चाहते थे ना आंखो मे
अब डुब के देखो पानी ही पानी है
कसूर नही बताता मैं तेरा
ये तो मेरी इश्क की निशानी है

जाने अब मैं और क्या बाकी है जो न टुटा है
सब कुछ तो छुट गया जब से साथ तेरा छुटा है
खो कर खुद को ये मैंने पाया है
कौन करे हिसाब भला क्या किसके हिस्से आया है

ओर नही जलना मुझको इस आग मे
हो कर फनाह उड़ गया हू राख मे
मेरे इस राख को इश्क के दरवाजे पे लगाए
ये अंजाम हो मंजुर तो ही दिल किसी से लगाए! !

© Mγѕτєяιουѕ ᴡʀɪᴛᴇR✍️

शिद्दत
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