मुझे तुमसे प्यार नहीं बिलकुल भी नहीं... इतना सा भी नहीं Poem by Ashish Singh

मुझे तुमसे प्यार नहीं बिलकुल भी नहीं... इतना सा भी नहीं

मुझे तुमसे प्यार नहीं प्रिया
बिलकुल भी नहीं
इतना सा भी नहीं

हां सही सुना तुमने
मुझे तुमसे प्यार नहीं
मुझे तो इश्क है तुमसे

ये जो तुम्हारी आंखें मुझे देखने को बेकरार रहती है ना
मुझे उन आंखों में छुपी बेकरारी से इश्क है

ये जो तुम्हारी पलके मुझे देख कर शर्म से झुक जाती है ना
मुझे उन झुकी पलकों से इश्क है

और ये जो तुम बिना किसी श्रृंगार के सिर्फ एक बिंदी लगाती हो ना
मुझे तुम्हारे माथे पर लगी उस बिंदी से इश्क है

और तुम कुछ भी बोलने से पहले कहती हो सुनो
उस सुनो शब्द में छिपे हुए एक हक से इश्क है मुझे

हां मुझे तुमसे प्यार नहीं
बिलकुल भी नहीं
इतना सा भी नहीं
मुझे तो इश्क है तुमसे

मुझे इश्क नहीं तुम्हारे
उन सभी बातों से
उन सभी मुलाकातो से
उन सभी कसमे वादो से
जो तुम मुझसे नहीं खुद से करती हो

ये सोच कर कि कहीं कभी दूरियां आए तो
मैं दुखी ना हो जाऊ
ये जो तुम्हारे दिल में अनकही सी चाहत छुपी है
मुझे तुम्हारे दिल में छुपी उस चाहत से इश्क है

और ये जो हमेशा तुम झट से हर बात में ना कर देती हो ना
फिर अगले ही पल तुम्हारे मान जाने से इश्क है

हां प्रिया मुझे तुमसे प्यार नहीं
बिलकुल भी नहीं
मुझे तो तुमसे इश्क है

वो इश्क जो आंखों के रास्ते
दिल की गलियों से गुज़र कर रूह तक जाती है
हां प्रिया मुझे तुमसे वही रुहानी इश्क है


© Mγѕτєяιουѕ ᴡʀɪᴛᴇR✍️

मुझे तुमसे प्यार नहीं बिलकुल भी नहीं... इतना सा भी नहीं
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success