बीते लम्हे Poem by Ashish Singh

बीते लम्हे

बीते हुए लम्हे कब लौट के आते है
आना होता है जिन्हे
वो बोलो कहां फिर जाते हैं

जोड़ यादों के ईट दीवार बनाते हैं
छुप कर उन दीवारो मे फिर
हम तो यादें ही बहाते है

चाहतों का कद्र अगर उनको हो जाता
गया हुआ वो फिर
क्या लौट ना कभी आता

कैसै बताए उनको
वो कितना हमें सताते है
वक्त बे वक्त
जब वो यूं यादों मे आते है

तेरे सिवा कोई अब इस दिल मे ना आएगा
बन्द कर दिया हमने हर दरवाजा
अब तु जा भी ना पाएगा

हो नही सकता किसी का भी
अब मर्जी से आना जाना
छुपा लिया हमने अपनी चाहतों का खजाना

कुछ पल चुरा लाए हैहम बीते लम्हो से
रखा है उनको लगा के अपने सीने से

किसी को होगी भी ना खबर
कोई देख भी ना पाएगा
बीता हर वक्त संग मेरे चलता जाएगा

है इसमे प्यार मेरा
और तेरे साथ की निशानी
तेरे मेरे इश्क मे डूबी थी जो वो शाम सुहानी

कुछ ऐसे एक दुजे मे हम खो गए थे
दीया और बाती जैसे...एक हो गए थे

खुशबू तेरी सांसो की
आज भी मुझमे जिन्दा है
जिस्म से है बस जुदा रूह से कब जुदा है

©आशीष सिंह

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