लोग आते है चले जाते है
हम नादान है जो ठहर जाते है
क्या किसी से गिला शिकवा रखना
मौसम तो क्या यहाँ लोग भी बदल जाते है
कौन करे ये फैसला
कौन सही है ओर कौन गलत
बदल जाती है जब जरूरते
देखने तक के नजरिए मे आ जाता है फर्क
एक कहे मैं कम नही तो
दुजा शेर पे सवा शेर है
समझने को कोई राजी नही है आज
ये कैसा वक्त का उल्टा फेर है
दिल की कोई किमत ना रही
जान की किसको दरकार है
पुछे जाते है तब तक ही आप बस
जब तक आपकी सरकार है
कुआँ मे पानी ना हो तो
उसमे भी कचरा डाला जाता है
मीठा था पानी कुआँ का भला
किसको याद फिर आता है
शरीफो का इस जमाने मे
आज कोई काम नही
खुद को मिटा दो तो भी होता
किसी का यहाँ नाम नही
गैर तो यु ही बदनाम है
इल्जाम तो अपने लगाते है
बन्दूक तो खुद की होती है
बस कांधा दुजे का लगाते है
©आशीष सिंह
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