पापा Poem by Ashish Singh

पापा

पापा

पापा ने सिखाया हमेशा दूसरों के काम आना
दुनिया में बस पैसा कमाने का हुनर अच्छा नहीं है

जो इंसान को इंसान न समझे हमदर्द न बने
समझे ख़ुद को अच्छा मिरे लिए मगर अच्छा नहीं है

चाहे भरपूर हो ज़माने की हर दौलत से मगर
जहाँ लड़ते हों आपस में भाई वो घर अच्छा नहीं है

मुझको प्यारा है अपना एक छोटा-सा‌ आशियाँ
जिसमें मेरे माँ-बाप न हों वो महल अच्छा नहीं है

पिता की ऊँगली पकड़ काँटों की राहें भी हैं मंज़ूर
उनके बग़ैर जो हो फूलों का सफ़र अच्छा नहीं है

जो माँ-बाप का सहारा तक न बन सके बुढ़ापे में
उसको कहना अपना लख़्त-ए-जिगर अच्छा नहीं है

©आशीष सिंह

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