कुछ सवाल? Poem by Ashish Singh

कुछ सवाल?

क्या होना था मुझे क्या हो गया हु
जानू ना मैं खुद कहां खो गया हु

आखिर क्या ढूंढ रहा हु मैं किसकी मुझे तलाश है
बुझती ही नही है आखिर ना जाने कौन सी ये प्यास है

ना जमीं है पैरो तले ना सर पे है आसमां
अचानक क्यूं बेगाना सा लग रहा है सारा जहाँ

खो गया हु खुद मे कहीं कोई रास्ता नजर नही आता
बस चलता ही जा रहा हु लेकिन चलना भी नही भाता

जैसै कश्ती है कोई सागर मे...ना हाथ मे पतवार है
तुफान भी आने वाला है और तैरना भी नही आता

जाने क्या करने निकला था जाने कहां उलझ गया
संभल कर चलना सिखाते शायद खुद ही फिसल गया

होश ही ना रहा जाने कितना दुर मैं निकल आया
पलट के देखा तो दूर दूर तक कोई नज़र ना आया

डाल से टुटे पत्तो का हस्र यही तो होना है
कभी कोई कुचले पैरो तले
तो कभी जलकर राख होना है

एक दिन थम जाएगा यूं ही चलते सांसो का ये सफर
तब रूकेंगे पैर मेरे जब जमीन के नीचे होगा मेरा घर! !

© Ashish Singh

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